सहानुभूति

 

डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

   मानवीय जीवन मूल्यों के बिना मनुष्य अधूरा माना जाता है जिसमें एक मुख्य जीवन मूल्य है सहानुभूति। सहानुभूति पूर्वक आपस मे संवाद करना मानवीय सभ्यता व संस्कार के अंतर्गत आता है। किसी असहाय के प्रति सहानुभूति की भावना व्यक्त करने से आपस मे अपनत्व बढ़ता है।किसी व्यक्ति की संवेगात्मक प्रक्रिया को समझना। दूसरों के मनोभावों को समझना ही सहानुभूति है।जो दूसरा महसूस कर रहा है वह स्वयं महसूस करे उसे सहानुभूति कहते हैं।दूसरों के साथ भावनाओं को साझा करना। एक माता अपने पुत्र के जब चोंट लगती है तो उसकी माँ को दर्द होता है यह सहानुभूति मानते हैं।

  महात्मा बुद्ध ने रोगग्रस्त व्यक्ति को देखा तो सहानुभूति पूर्वक संसार मे कार्य करने का मूलमन्त्र फूँका।किसी व्यक्ति को दुखी देखकर स्वयं उसके साथ दुख के संवेग का अनुभव करना।

सहानुभूति सामूहिकता की मूल प्रवृति का भाव पक्ष कहा जाता ह। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संवेग का संचार ही सहानुभूति है।दुख दर्द परेशानी डर आदि संवेग व्यक्ति में पाए जाते हैं। एक भिखारी को जब हम भीख मांगते हुए देखते हैं तो हम उसके प्रति सहानुभूति की भावना रखते हैं।

  सहानुभूति द्वारा समस्या का हल निकल सकते हैं इससे बालकों का संवेगात्मक विकास होता है।नैतिकता व सौन्दर्यानुभूति का विकास भी किया जा सकता है।यह बालको के सामाजिक विकास में जरूरी है।


-डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

कवि,साहित्यकार

भवानीमंडी

जिला झालावाड

राजस्थान

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