गीता पांडे "अपराजिता "
झूला पड़ गया देखो सखी निमिया की डार।
हरी-भरी यह धरा दिखे सावन की फुहार।।
सावन पर यौवन छाया बना हुआ दीवाना।
दादुर मोर शोर करे पपिहा पिऊँ तराना।
मनभावन मौसम लागे आया तीज त्यौहार।
हरी भरी धरती दिखे सावन की फुहार ।।
चुड़ियांँ चुनर पहनी हरी मेंहंँदी रची हाथ। ।
मिलजुल कर कजरी गाती सब सखियां हैं साथ ।
हंँसी ठिठोली सब है करती साजे सब श्रृंगार ।
हरी-भरी यह धरती दिखे सावन की फुहार। ।
गीत प्रीति के गाती रही भावो भरे अपार ।
खन खन कंगना खनके पायल करे झंकार ।
नाम सजन का हाथों लिखा मिले असीमित प्यार ।
हरी-भरी यह धरती दिखे सावन की फुहार।।
सावन का महीना शिव को लगता अति प्यारा ,
कांँवरियों की भीड़ बढ़े लगे हैं जय कारा।
शिव मंदिर पर दिखती है भक्तों की कतार ।
हरी भरी धरती दिखे सावन की फुहार।।
मनोकामना पूर्ण करें बाबा भोलेनाथ।
तीज का व्रत रखे सुहागिन सिर बाबा का हाथ।
शंभू के आशीष से महके सारा संसार।
हरी-भरी यह धरती दिखे सावन की फुहार ।।
गीता पांडे "अपराजिता "
रायबरेली उत्तर प्रदेश