पीर के तीर

 


रेखा शाह आरबी 

मुकद्दर की कहानी है ,इसे तुम हार ना समझो।

मुस्कुराकर मिलने को, कभी तुम प्यार ना समझो।।

टुटोगे तड़पोओगे, बहुत ही जागी आंखों से।

कुछ पल नींद आ जाए, उसे करार ना समझो।।1।।


एक पत्थर पर दिल आया, तुम उसकी पीर क्या जानो।

जो दिल को चुभते हैं, तुम वो तीर क्या जानो।।

हमें उल्फत में उलझा के, तुम तो चल दिए जाना।

हमारे दिल पर चलते हैं, वो शमशीर क्या जानो।।2।।


तुमसे प्यार मांगा था ,खुदाई तो नहीं मांगी।

फकत उल्फत में जाने जा, जुदाई तो नहीं मांगी।।

हमारे लफ्ज थकते हैं ,हमारे ही दिल में।

हमने साथ मांगा था, तन्हाई तो नहीं मागी।।3।।


आंख रोती है तो ,आंसू अंबर के निकलते हैं 

हमारे ख्वाब बस सारे ,तुम में ही पलते हैं ।।

तुमने प्यार को छोड़ा, लो हमने छोड़ दी दुनिया।

 तुम अब घर को चलते हो ,हम दुनिया से चलते हैं।।4।।


रेखा शाह आरबी 

जिला बलिया उत्तर प्रदेश

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