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आत्म परिचय
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मध्यम-वर्ग में जन्मी,
गाजियाबाद धाम।।
सन् उन्नीस सौ पचास,
वीणा मेरा नाम।।
दिल्ली में पालन हुआ,
यहीं हुई पढा़ई।।
अध्यापन आजीविका,
ज्ञान-अलख जगाई।।
पति मिले शिवजी जैसे ,
नारियल सम सुभाय।।
दुःख-सुख के साथी सदा,
पल खुश,पलहि रिसाय।।
गार्हस्थ्य बीता सुख से
लिए नवल श्रृंगार।।
मनन- चिंतन मम पुत्र दो
युक्त बुद्धि संस्कार।।
शिखा-रचिता पुत्रवधू,
सुशिक्षिता ,संस्कारी।।
अथा-अग्रय सुभविष्य,
सुवासित फुलवारी ।।
जीवन सहज सदा रहा,
सब से रखा नाता।।
जो चाहा ,पाया वही,
वैर -भाव न भाता।।
निज धर्म,भाषा,संस्कृति,
देश बना अभिमान।।
इनकी उन्नति के लिए,
अर्पित मेरे प्राण।।
प्रभु के प्रति मन में रखा,
सदा अडिग विश्वास।।
कर्म लक्ष्य मान अपना,
हर पल किया विकास।।
माँ वाणी ने की कृपा,
रचे काव्य दो -चार।।
नहीं चाहती और कुछ,
करना प्रभु उद्धार।।
वीणा गुप्त
नई दिल्ली
सस्नेह
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