जीवन_जीने_की_कला

मानसी मित्तल 

सबसे पहले ये जरूरी है कि जीवन जीने का सार अर्थात अर्थ क्या है?जीता तो हर कोई इंसान है परन्तु जीवन जीने के लिए सबसे पहले सरल होना बहुत जरूरी है,और सरल तभी हुआ जा सकता है जब हम अपनी बात को सरलता से व रोचक तरीके से किसी के समक्ष 

प्रस्तुत कर सकें।यही से शुरू होती है *जीवन जीने की कला*।

                  बड़े से बड़े विद्वानों व महापुरुषों ने अनेकों ग्रंथों व पुराणों में स्पष्ट किया है कि मानस जन्म चौरासी लाख योनियों बाद मिलता है। लेकिन कुछ लोग तो जिंदा रहने के लिए जीते हैं , लेकिन ये पता होना बहुत जरूरी है कि हम क्यों जी रहे हैं, और जीवन जीने के लिए हमारा क्या उद्देश्य है?

                  जीवन जीने के लिए एक अच्छा इंसान होना बहुत जरूरी है, जैसे- अच्छे कर्म, परिवार का अच्छा पालन पोषण,दिल न दुखाना, ईर्ष्या न करना, क्रोधित न होना,सबसे जरूरी मधुर व्यवहार आदि।सभी के जीवन जीने की कला के विभन्न रूप होते हैं जैसे विभिन प्रकार की आवश्यकताएँ,व इच्छाएं । सही जीने का ढंग वही है जो अपने पास हो उसी में संतुष्ट रहें। संतुष्टि ही जीवन जीने के सबसे बड़ी कला है।ये ही व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाता है।सर्वश्रेष्ठ बनना ही जीवन को सुख से परिपूर्ण करता है। मनुष्य को सांसारिक परिस्थितियों से बाहर निकलना होगा। जीवन जीने के लिए आत्म चिंतन होना ही सर्वोपरि है। जीवन जीने के लिए स्व अनुभूति भी होना जरूरी है। यह सत्यता, शांति,व प्रेम, सदभावना की ओर अग्रसर करती है। जिस प्रकार हमें फूलों से खुशबू का पता चलता है उसी प्रकार हमारा व्यवहार ही हमारे चरित्र को ज्ञात कराता है।

         अच्छा चरित्र ही जीवन जीने की सबसे बड़ी पूंजी है।और यही पूंजी जीवन जीने की कला को सर्वोच्च बनाती है।


स्वरचित व मौलिक✍️

मानसी मित्तल

शिकारपुर

जिला बुलन्दशहर

उत्तर प्रदेश

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