दोहा - गीत
========
अनुशासन मन में रमे,
रहे सत्य का ज्ञान ।
राग कलुषता छोड़ दें,
करें नहीँ अभिमान ।।
सत्य सहारा ही बने,
रखें ईश का ध्यान ।
व्यर्थ विमर्षक हों नहीं,
देश -प्रेम संज्ञान ।।
विनय शील गुण धर्म हो,
हो सबका सम मान ।
अनुशासन मन में रमे,
रहे सत्य का ज्ञान ।।
सत्याग्रह की आड़ में,
हो न कभी नुकसान ।
गरिमा धूमिल हो नहीं,
लोकतंत्र की शान ।।
हट रट से हल हो नहीं,
कहते सन्त सुजान ।
अनुशासन मन में रमे ,
रहे सत्य का ज्ञान ।।
जन-जीवन खुशियाँ वहैं,
विकसित हो विज्ञान ।
प्रगति किसी की ना रुके,
टूटे नहीं विधान ।।
भाव अनुज मन प्रेम का,
करो सदा गुणगान ।
अनुशासन मन में रमे,
रहे सत्य का ज्ञान ।।
अनुजयी दोहे
-(झलकृत शूल उसूल )
====================
रोते हैं दिखते नहीं,
बाबूजी मुस्कात ।
अंगुल पकड़े थे कभी,
छोड़ चले वह हाथ ।।
दिन दीखे अब रात सा,
बिखर गये सब साज ।
दर्पण खूब निहारते ,
भूल रहे पल आज ।।
राज सिखाये थे जिसे,
वही हो गये राज ।
हाथ पैर बल खा रहे,
बिगड़ रहे सद्काज ।।
साथ रहे टूटी छड़ी,
समय सिखाये लाज ।
कद ऊँचा लगता जहाँ,
छिने वहीं सर ताज ।।
प्रतिक्षण मन बस सोचता,
शहर रहा मगरूर।
नज़र परायी थी सखे,
डगर लगे मजबूर ।।
साज ताज नाराज सब,
विफरे प्यारे फूल ।
बाबूजी आँखन तले ,
झलकृत शूल उसूल ।।
अनुजयी दोहे
==========
मधुवन झूमे गूंजता,
ज्यों मुरली का शोर ।
उपवन महके फाग सा,
धुनि अपनी चितचोर ।।
डगर भूल पनघट गई,
भूली मटकी नीर ।
याद पलों की ना रही,
आके यमुना तीर ।।
धुनि सुन बेसुध राधिका,
भूले बिसरे काम ।
श्याम बजाई बाँसुरी,
मोह लियो ब्रजधाम ।।
अनुजयी दोहे ----
✍🏽 साकी
===========
साकी हाथन में लिये,
प्याला महक गुलाब ।
अधरन से छूलूँ गले ,
हाला प्रेम शबाब ।।
घूँट-घूँट से बढ़त है,
आशा प्यास नकाब ।
मौन रहें ताके नयन ,
निकले जुगल जबाब ।।
गला तरा-तर होत जब,
साकी मन समझात ।
किले बनें वक्तव्य के,
पाठ पढ़े पढ़वात ।।
इक- इक में दो दीखते,
दर्पण झूँठ खिताब ।
साकी पुस्तक सामने,
वाचन लगे हिसाब ।।
अनुजयी दोहे
=========
संयम सुन्दर सार्थक,
सहज ध्यान सम्मान ।
मन में ईश्वर आस्था,
यत्न परिश्रम ज्ञान ।।
दया विनय चादर पहन,
उत्तम सजे विचार ।
अहम् लोभ दूरी बसे,
करूँ सदा उपकार ।।
ह्रदय प्रेम धारा वहे,
जगे समर्पण भाव ।
त्याग राग हो पल्लवित,
करुणा हो बुनियाद ।।
गीत --
राग में खो गई रागिनी आपकी
===========
राग में खो गई ,रागिनी आपकी ।
मान ली जान ली,दामिनी आपकी ।।
पास आती दिखी ,आज गाती दिखी ।
आशिकी भी भली ,आजमाती दिखी ।।
चांद पाया सजी , चाँदनी आपकी ।
राग में खो गई,रागिनी आपकी ।।
राह मोड़े दिखे,भाव थोड़े दिखे ।
शाम को जाम के,पाँव ओढ़े दिखे ।।
कांपती भांपती ,बानगी आपकी ।
राग में खो गई, रागिनी आपकी ।।
ज्ञान की रीति सी,शान संगीत सी ।
ताल ही ना मिली,हार भी जीत सी ।।
ख्वाब बीता बुनूँ ,जिन्दगी आपकी ।
राग में खो गई , रागिनी आपकी ।।
भूल को भूलती ,बेरुखी आपकी ।
पास आके पढ़ी,बेबसी आपकी ।।
रात सी भा गई ,रोशनी आपकी ।
राग में खो गयी ,रागिनी आपकी ।।
गीत
====
माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।
ग्वाल बाल सब मोह लिए,गल अलबेल रहे ।।
आते-जाते ध्याते मुनि,पुलकित हर्षायें ।
सोते-जगते गीता मय,रसपान करायें ।।
सन्त चरण धरती निर्मल,बढ़ती बेल रहे ।
माखन चोर मुरलिया में, जग स्वर खेल रहे ।।
जहाँ जन्म कान्हा लीना,पावन जेल रहे ।
गोकुल डगर बढ़त राधे ,तन-मन झेल रहे ।।
माथे रज ब्रज भव्य सजे ,जीवन मेल रहे ।
माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।।
जन्म भूमि मथुरा आये ,सावन मुस्काये ।
नयन दरश कर जल छाये , आँगन इतराये ।।
जग-भ्रम अनुज भवन-उलझन ,तृण अठखेल रहे ।
माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।।
माखन चोर मुरलिया में ,जग स्वर खेल रहे ।
ग्वाल बाल सब मोह लिए ,गल अलबेल रहे ।।
पावन परम ,शहादत लिख दी
( गीत )
दिल की नई , इबारत लिख दी ।
पावन परम , शहादत लिख दी ।।
वीरो कभी ,भूल ना पायें ।
बलिदानी वह , दिन दुहरायें ।
जान देश-हित , चाहत लिख दी ।
पावन परम , शहादत लिख दी।।
मातृभूमि का करुणिम पर्वा ।
कोटिश नमन , वीरता जज्बा ।।
गोद -भारती , राहत लिख दी ।
पावन परम , शहादत लिख दी ।।
वीर भगत ,सुखदेव राजगुरु ।
फाँसी चड़त, शान अरुणा अरु।।
हर्षित वतन ,इबादत लिख दी ।
पावन परम , शहादत लिख दी ।।
शोकाकुल है , मात भारती ।
अंश भवानी ,करत आरती ।।
मौत सुहानी ,आदत लिख दी ।
पावन परम ,शहादत लिख दी ।।
दिल की नई ,इबारत लिख दी ।
पावन परम , शहादत लिख दी ।।
अश्क समुंदर,सम गहराये
!! गीत !!
================
मेघ गीत नभ,जब-जब गाये ।
अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।
नयनों लहरें,उमड़त आए ।
बीचों- बीच ,नाव मुस्काए ।।
प्रेम -रीति जग,मन घवराये ।
अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।
जन-जन सुखी,प्रीत शरमाये ।
रब की दुआ, मीत गण आये ।।
जीते आप , हार दुहराये ।
अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।
जीवन -मरण ,खेल अठखेली ।
ह्रदय भावुक , मेल सहेली ।।
राहें सत्य ,चलत घर पाये ।
अश्क समुंदर,सम गहराये ।।
चालों की हर , चाल सुहानी ।
भावों की सब ,विधा पुरानी ।।
सीखत अनुज ,गीत लिख भाये ।
अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।
मेघ-गीत नभ ,जब -जब गाये ।
अश्क समुंदर ,सम गहराये ।।
।। गीत ।।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।
ख्वाब चित्र , अहसास प्रभाती ।।
सृजन छन्द ,महिमा दर्शाये ।
मनोवेग , आभास कराये ।।
कल्पित कभी, सत्य दुहराती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
ह्रदय पुलकित,राग सजाए ।
धूप-छाँव , अनुराग लुभाए ।।
पल-पल राग , नया गढ़ जाती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
पुष्प-वाटिका ,मरुथल गाये ।
राजा कभी ,रंक दिखलाए ।।
तृण-तृण गाती,क्षण-क्षण भाती।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
खिलती कली ,कभी शरमाये ।
भावुक भुवन ,तरुण तड़पाये ।।
मानव भावों ,लय गहराती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
वर्तमान को, राह दिखाये ।
जीने की ,हर चाह सिखाये ।।
सदियों के, इतिहास बताती ।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।
कभी खुशी गम, पाठ पढाये ।
आशाओं के ,दीप जलाये ।।
जन-मन प्रभु ,तीर्थ रम जाती ।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
नदियाँ कभी, प्रबल वह जाए ।
शहर गाँव ,गलियाँ कहलाए ।।
दर्शन पथिक ,राह सम थाती ।
कविता प्रण , विश्वास जगाती ।।
शब्द सृष्टि का,प्रणय कराये ।
सागर में , लहरें ठहराये ।।
सुबह-शाम ,चाहत तरसाती।
कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।
चांद सितारे ,दिनकर लाए ।
तोता -मैना ,नाच नचाये ।।
बचपन बाल, सखा मुस्काती ।
कविता प्रण,विश्वास जगाती ।।
नफरत द्वार ,आग इतराये ।
प्रेम -पुंज मन ,फाग सुहाये ।।
अनुज-गीत ,मधुरिम बरसाती।
कविता प्रण ,विश्वास जगाती ।।
✍🏽 डॉ अनुज कुमार चौहान "अनुज"
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश ।