संतोष

  


नंदिनी लहेजा

अनगिनत व्यस्तताओं में, घिर से गए हम। 

कर्मपथ पर चलते चलते, थक से गए हम। 

नित नया दिन, एक नई चुनौती लिए खड़ा है ,

उनको पार करते करते, ऊब से गए हम। 

सोचते है, क्यों नहीं करते संतोष हम मानव,

बस अधिक की चाह में, भागते गए से हम। 

इक बार कर के देख लें, संतोष जीवन में,

आत्मिक आनंद का ,अनुभव करेंगे हम। 

माना प्रतियोगिताएं का दौर है,

हर क्षण हमारे सामने, प्रतियोगी खड़ा है। 

चाहता मन सदा सर्वश्रेष्ठ करने को,

संतोष का दीपक कहाँ , किसी के मन में जला है। 

पर इक बार संतोष को, जगा तो भीतर में। 

ईश्वर को पाएगा, अपने समीप में। 

वो दिखाएगा तुझे, सही राह और मंजिल। 

बस कर्मों को रखना सदा, तो नेक हर मोड़ पर। 


नंदिनी लहेजा

रायपुर(छत्तीसगढ़)

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित

Popular posts
सफेद दूब-
Image
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
अभिनय की दुनिया का एक संघर्षशील अभिनेता की कहानी "
Image
कर्ज संकट की खास योग
Image
भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के मनीषि बिमलेन्दु पाण्डेय जी के जन्मदिन के बहुते बधाई अउर शुभकामना
Image