कविवर मैथिली शरण गुप्त जी की जयंती पर एक रचना
वीणा गुप्त
चारु चंद्र की चंचल किरणों सम,
खेले काव्य -सरोवर जल में,
तव प्रतिभा आभा छिटकाती,
क्या अंबर,क्या अवनी तल में।
मानव मन के कुशल चितेरे,
ले,कविता के जगमग घेरे,
किया उजागर हर अंतस कोना,
राधा,सीता,उर्मिला,यशोधरा ,
किसकी तुमने कथा कही ना?
अबला जीवन की मर्म कहानी,
ममता-व्यथा कवि तुमने ही जानी,
उसका मान,ओज,दर्प उसका
तेरे काव्य -दर्पण में झलका।
राष्ट्र-प्रेम की प्रतिमा साकार।
राष्ट्र ही जीवन की रस धार।
राष्ट्र ही प्राण, राष्ट्र ही धड़कन,
राष्ट्र ही पूजा, राष्ट्र ही अर्चन,
किया अतीत का गरिमा मंडन।
दृष्टि सजग,वर्तमान पर धारी,
ले देश भविष्य की उज्ज्वल आशा,
तुमने हर एक समस्या विचारी।
भारत- भारती का किया गान,
मातृभूमि में निरख मुदित हुए,
तुम सर्वेश्वर का रूप महान।
हिंदी ,संस्कृत ,बंगला के ज्ञाता ।
इतिहास ,पुराण,धर्म,आख्याता।
प्रांजल खड़ीबोली अपनाई
सभी काव्य- शैली मन भाईं।
खंड, प्रबंध, महाकाव्य अपार।
वैविध्य -भरा रचना संसार।
सहज वतास सी बहती कविता।
मंथर ,मंजुल, मृदुल, पुनीता।
यश ,वैभव की नहीं चाह थी।
सर्व हितकारी रचना तुम्हारी ,
सत्य ,शिव की संदेशवाह थी।
जीवन मूल्यों का किया उत्थान ।
धन्य -धन्य तुम कविवर मैथिली !
तव कविता ,हिंदी का जय गान।
वीणागुप्त
नई दिल्ली
३/८/२०२१