पल पल यादें ऐसी छाई



डॉ.गोरथनसिंह सोढा 'जहरीला'

जब मौसम ने ली अंगड़ाई। 

पल पल यादें ऐसी छाई। 


वो सावन की ठण्डी फुहारें।

हमें वो करती थी इशारे।। 

बागों में छुप छुपकर मिलना। 

याद आये पहाड़ों का झरना।।

पड़ी आँखों पर धुँधली परछाई। 

पल पल यादें ऐसी छाई।।


तुझको अब तक नहीं भूलें।

जब तेरे साथ ही झूले।।

डाली से डोरी टूट गई। 

तू हमसे ही रूठ गई।। 

जी जाने तुझे कैसे मनाई । 

पल पल यादें ऐसी छाई।।


भागकर देखने गये हम मेले। 

साथ साथ गरबे हम खेले।। 

तेरे बगैर मुश्किल था जीना। 

वन में वन विहार करना।। 

तूने कान की बाली गँवाई। 

पल पल यादें ऐसी छाई।। 


जीने मरने की कसमें खाना। 

तेरा हमारे दिल में समाना।।

बैण्ड बाजे सहित बारात लाना। 

सात फेरो में बँध जाना।। 

घूँघट में खुशी खुशी शर्माई । 

पल पल यादें ऐसी छाई।। 


सर्वाधिकार सुरक्षित-


डॉ.गोरथनसिंह सोढा 'जहरीला'

           जिलाध्यक्ष

अखिल भारतीय साहित्य परिषद 

       बाड़मेर राजस्थान



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