विमल सागर
बेटी बहू फर्क कैसा
आकर्षण दुनिया सब कैसा
विवाह बेटी खुशियां मनायें
खर्चा अधिक शादी दुख कैसा?
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दान पुण्य दहेज कहाया
दहेज बिन क्या शादी सुख कैसा
बहू संस्कार लाये क्यों
बेटी बन रंग दिखाये तो कैसा?
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बेटी अंतर्मन दुखी हुईं
बहू करे आज की नाटक
नहीं समझ यह सुख कैसा?
कहे बहू बेटी में फर्क कैसा?
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देखीं मरतीं बेटी बलि नहीं दहेज
मरतीं हैं बेटी बंदिश पाकर घर की
कुरीती कदम पुरूष संग कैसा?
बेटीबनूँ चाह बहू तो भ्रम कैसा?
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शोषण -शोषित वही हुई
जिसमें विश्वास संस्कार सभी थे
घुटी चींख निकली ना बाहर
सिखायें संस्कार व्यर्थ बेटी कैसा?
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बेटी बहू में फर्क कैसा
जाना सबने सबने समझा तो
नारी नारी शोषण क्यों कैसा?
बेटी बहू में फर्क कैसा ?
विमल सागर
उत्तर प्रदेश