अनिता मंदिलवार "सपना" की कलम से

मैं कौन हूँ

आज फिर से अंदर से
एक आवाज आई
मैं कौन हूँ?
कहते हैं नारी की
पहली जिम्मेदारी 
घर, परिवार, बच्चे 
अपने आप को तोड़कर
पूरी करती रही जिम्मेदारी 
फिर भी नारी क्यों हारी !
क्या उसका कसूर
बस इतना था
वह जीना चाहती थी
कुछ पल अपने लिए
उड़ना चाहती थी 
उन्मुक्त गगन में
उसकी क्या गलती थी
अपनी क्षमताओं का
उपयोग ही तो करना
चाहती थी 
गढ़ना चाहती थी
एक नया इतिहास !
दूसरों की छोड़ो 
अपनों ने भी 
साथ नहीं दिया
बस आज भी
नारी की परिभाषा 
इतनी सी है
वह औरों के लिए जिए
हाँ, बस औरों के लिए


सपनों का मोल

एक लड़की 
जो प्रेम पाना चाहती थी
प्रेम के बदले 
समर्पण चाहती थी
समर्पण के बदले
क्या उसकी चाह
गलत थी ?
सभी ने उसे 
अपने हिसाब से 
उसका उपयोग 
करना चाहा
क्या घर 
और क्या बाहर
प्रेम न उसे मिलना था
न ही मिल पाया !
उसकी चाहत का क्या 
उसके सपनों का क्या
कोई मोल था या है ?
शायद नहीं  
उसकी चाहत ही
गलत है 
उसे कुछ पाने का 
हक नहीं है 
हाँ, नहीं है -----!

 अनिता मंदिलवार "सपना"

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