विद्या भूषण मिश्र "भूषण"
एक डायरी घर के कोनें में मैंने कल पायी ,
ज्यों ही उसको खोला मुझको याद तुम्हारी आयी!!
गीत और ग़ज़लों के मुखड़े उसमें लिखे थे,
मुडे़ तुडे़ पन्नों पर बिखरी थी शब्दों की स्याही!!
कुछ ख़त आधे और अधूरे,जिन पर नाम तुम्हारा,
लिख कर मेंने रख छोडे़ थे,वे भी दिए दिखाई!!
सूखी पंखुड़ियाँ गुलाब की दबी हुई देखी थी,
कभी किसी के हाथों से जो तुमने थी भिजवाई!!
कब शादी,कब गौना कर के माँ ने ज़िद की पूरी,
अभी पढ़ाई जारी ही थी, तुम मेरे घर आई!!
लिक्खा था पैसा क्या पाया घर से, खर्च किया क्या,
कितना कर्जा बाकी, कितनी बाकी फी़स लगाई!!
घर आने-जाने का भाडा़,पंचर की बनवाई,
एक एक खर्चे का विवरण, रुपया,आना, पाई!!
कब बीमार पड़ा, कब कक्षा छोड़ी पिक्चर खातिर्,
सारा ब्यौरा मुझे डायरी में था पडा़ दिखाई!!
पढ़ते पढ़ते कभी हँसा तो कभी चौंक जाता था,
कभी शून्य में था निहारता, आई कभी रुलाई!!
सारी कथा सुना दी तुमने दादी नानी जैसे ,
धन्य धन्य है तेरी महिमा, धन्य डायरी माई!!
------------
*--विद्या भूषण मिश्र "भूषण", बलिया, उत्तर प्रदेश--*
~~~~~~~~~