विचारों के शोर में मन की आवाज़ को न दबने दें क्योंकि ऐसा करने से हम भय के साये में जीते और भूल जाते कि जीवन का अपना प्रवाह होता है। जीवन में जो बातें महत्व रखतीं, जैसे- सुंदरता, पे्रम, रचनात्मकता, खुशी और आन्तरिक शांति जो हमें मन से मिलती है। इस शांति को, स्वयं की स्थिरता, हमारे मूल में, उसे ढूंढना, पाना है और दिल खोलकर अंगीकार करना क्योंकि निर्भय व्यक्ति कुछ कर सकता, डर-डर कर चलने वाले लोग दूसरों में खुशियाँ या उनके अनुसार जीना, महत्व देना, तर्क को कल्पना से अधिक महत्व देना, सत्य की राह पर चलते हुए सकुचाना और स्वयं के विषय में गलत धारणा बनाना जैसे बिन्दु जीवन को हारा हुआ अनुभव करवाते हैं।
तात्पर्य है कि पहले स्वयं से पूछें कि हम स्वयं से प्यार करते? स्वयं पर विश्वास रखते हैं? क्या सत्य की राह पर चलना चाहते? अगर हाँ! तो स्वयं को भटका, निराश, संकोची या कमजोर मानना छोड़ दें क्योंकि समय पास, स्वयं को खोजिए कि कौन हैं हम? और जब स्वयं को पा लें, तब प्राप्त होगा एक खिलता हुआ कमल, भले ही वो कीचड़ में सना हो, पर होगा मजबूत व सुंदर क्योंकि जग को सुरभित करने वाला एक पुष्प होता जो अपनी सुवास के गुण से साधारण मानव क्या ईश्वर तक को प्रिय होता है। इसलिए अपनी नकारात्मकता को पीछे छोड़ते हुए कदमों को आगे बढ़ाएं और स्वयं से प्रेम करते, अपनी मंजिल की ओर बढ़े, फिर देखिए जीवन से प्यार हो जायेगा क्योंकि सही जीने की राह जो मिल जायेगी।
रश्मि अग्रवाल
नजीबाबाद
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