नीतू झा
लताएँ झूलना चाहती हैं बादलों पर
ले आना चाहती हैं सूरज से सिंदूरी
और फैला देती हैं वह सिंदूरी
सारी धरती पर
लताएँ प्रेम करती हैं आकाश से
प्रेम की टहनियों पर बेसुध हो झूमती हैं
टकराती हैं सावन की तेज हवा-पानी से
लात्-पात् सब उधेड़-उजेर,
वे प्रेम करती हैं आकाश से
लताओं को पता है
ये जीवन चार दिन का है
वे खोना नहीं चाहती
मरने से पहले ही ज़िंदगी
तभी तो वे निडरता से
प्रेम करती हैं आकाश से
वे जानती हैं सूरज डूबता नहीं,
छुप जाता है हमारे पीछे
वे जानती हैं प्रेम मरता नहीं,
फिर-फिर आता है
इसलिए वे डरती नहीं किसीसे
प्रेम करती हैं आकाश से
हाँ , वे प्रेम करती हैं आकाश से
अविचल अविरत !
-✍️नीतू झा
-नयी दिल्ली
gudmegud@gmail.com