पूनम शर्मा स्नेहिल
देती हमको जीवन दान ,
कर लो तुम उसका सम्मान।
नहीं मांँगती तुमसे कुछ भी ,
पर उससे चलते हैं सारे काम ।
छाव उसी की पाकर आता ,
तपती धूप में आराम ।
रुकती नहीं है गति कभी उसकी,
चाहें सुबह हो चाहें शाम ।
आंँचल में इसके ही बसते ,
सारे तीरथ सारे धाम ।
प्यार से इसको देते हम ,
प्रकृति मां का बस इक नाम।
आज धरोहर पर अपनी ,
लग ना जाए पूर्ण विराम।
प्रयत्न सभी को करना है,
करते हैं जिसका गुणगान ।
आओ बताएंँ प्रकृति को हम ,
करते हैं उसका सम्मान।।
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