प्रकृति से प्रेम

 


पूनम शर्मा स्नेहिल

देती हमको जीवन दान ,

कर लो तुम उसका सम्मान।

नहीं मांँगती तुमसे कुछ भी ,

पर उससे चलते हैं सारे काम ।

छाव उसी की पाकर आता ,

तपती धूप में आराम ।

रुकती नहीं है गति कभी उसकी,

 चाहें सुबह हो चाहें शाम ।

आंँचल में इसके ही बसते ,

सारे तीरथ सारे धाम ।

प्यार से इसको देते हम ,

प्रकृति मां का बस इक नाम।

आज धरोहर पर अपनी ,

लग ना जाए पूर्ण विराम। 

प्रयत्न सभी को करना है,

 करते हैं जिसका गुणगान ।

आओ बताएंँ प्रकृति को हम ,

करते हैं उसका सम्मान।।


©️®️☯️

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