प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
राधा तन है बांसुरी, स्वर स्वरूप हैं श्याम।
प्रेम मगन हो गाइये, जय-जय गोकुल धाम।।
कंचन काया कामिनी, चंचल चितवन नैन।
श्याम राधिके रास में, धवल चाँदनी रैन।।
पावन प्रेम प्रतीक हैं, मीरा के प्रभु श्याम!!
भक्ति प्रेम के योग से, होता मन निष्काम।।
देख सृष्टि मुख श्याम के, भूल गई सब काम।
मातु यशोदा स्तब्ध हो, प्रभु को करें प्रणाम।।
द्वार सुदामा देखि के, पुलकित हैं गोपाल।
प्रेम अश्रु से पाँव धुल, हिय से हुए निहाल।।
कुंडलिया
पाती लिख दूं श्याम को, बसे द्वारिका धाम।
भूल गये मनमोहना, तुम तो राधा नाम।
तुम तो राधा नाम, बने हो जाकर राजा।
माखन मिश्री श्याम, कभी तो आकर खाजा।
मन को मिले न चैन, हमें अब याद सताती।
अश्रु बहे दिन-रात, लिखूं मैं तुमको पाती।।
प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश