तरुणा पुंडीर 'तरुनिल'
हवा दूषित हुई,
जल दूषित हुआ,
धरती कंक्रीट,
प्लास्टिक का कहर,
जहर हर शहर,
मानव ने जिसे छुआ।
कमी सरकार की?
दोष इसका
उसके सर मढ़ा।
अपने घर से फेंका
सड़कों पर कूड़ा,
गाड़ियाँ कई
छोड़ती धुंआ,
बजते हॉर्न,
भागती सड़कें,
प्रदूषण मानो
एक बददुआ !
संकट में जीवन,
दूषित पर्यावरण,
घटते जंगल,
बेघर जीव-जंतु,
तापमान का पारा
ज्यों ज्यो चढ़ा!
पिघलते ग्लेशियर,
ग्लोबल वार्मिंग ,
विश्व गैस चेम्बर बना !
खोट किसमें?
दोष किसका ?
कमी कहाँ?
बुरा जो देखन 'मैं' चला।