मेरी अधूरी रचना

 

विक्रांत राजपूत चम्बली

लिखने चला ख्वाब अपने देखने लगा एक सपना।

ख्वाबों को कहाँ लिखा किसने इसलिए अधूरी है रचना।।


जीवन एक अधूरी रचना सा जो पल-पल ख्वाब देखता है।

गर सपने पूरे ना हो तो फिर अग्नि सा दहकता है।।


सपनों का कुछ भी पता नहीं नियति का खेल निराला है।

ख्वाबों की दुनिया उलझी सी जैसे मकड़ी का जाला है।।


सारी रचना पूरी होंगी लगता है एक सपना है।

ख्वाबों को कहाँ लिखा किसने इसलिए अधूरी रचना है।।


ख्वाबों, रचना में फर्क नहीं दोनों एक से दिखते हैं।

ना रचनाओं का मोल है ना ख्वाब कहीं पर बिकते हैं।।


नियति के इस मकड़जाल में ख्वाब न पूरे होते हैं।।

रचनाओं को लेकर भी हम हरदम शंकित होते हैं।।


होगी पूर्ण कि ना होगी आखिर यह भी एक सपना है।

ख्वाबों को कहाँ लिखा किसने इसलिए अधूरी रचना है।।



नाम - विक्रांत राजपूत चम्बली

पता - ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

ईमेल पता - ndlodhi2@yahoo.com


© स्वरचित रचना एवं

सर्वाधिकार सुरक्षित

Popular posts
अस्त ग्रह बुरा नहीं और वक्री ग्रह उल्टा नहीं : ज्योतिष में वक्री व अस्त ग्रहों के प्रभाव को समझें
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं वरिष्ठ कवियत्री नोरिन शर्मा जी दिल्ली से
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं प्रो आराधना प्रियदर्शिनी जी हजारीबाग झारखंड से
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं अनिल कुमार दुबे "अंशु"
Image
दि ग्राम टुडे न्यूज पोर्टल पर लाइव हैं गोविन्द कुमार गुप्ता जी लखीमपुर-खीरी उत्तर प्रदेश
Image