महेन्द्र सिंह "राज"
प्रकृति की
गोद में बैठा
हर मानव
यही सोचता है।
कि प्रकति
हमारे अनुसार
चलती रहे,
निज राह में
आई रुकावटो
पर प्रकृति
को कोसता है।।
प्रकति तो
अपना काम
अनवरत करेगी
उसे तो करना ही है
वह भारत के
संविधान से
संचालित नहीं है
कि उसमें भी
नेताओं के
सुविधानुसार
गाहे बगाहे
संशोधन होता रहे।
और समर्थ लोग
उसमें अपने
स्वार्थ पूर्ण
कलुषित
कृत्यों को धोता रहे।।
प्रकृति के नियम
सृष्टि नियन्ता
के नियम हैं।
ये नियामक
के अनुसार
ही चलेंगे
ताकि पूरे
ब्रह्माण्ड का
संतुलन बना रहे।
ब्रह्मांड में रह
रहे हर प्राणी
को पवन नीर
अविराम मिलता रहे।।
पर सबसे
स्वार्थी मानव है
अब वह बन
गया दानव है
अपने हित में
उसने वृक्षों को काटा
पर्वतों को छांटा
नदियों को
अपने अनुसार
मोडा बांधा,
अम्बर को
अपने अनुसार
देश की
सीमाओं
में साधा ,
कल कारखाने
लगा प्राण वायु
को दूषित किया
जल को
कलुषित किया
महसागरों का
सीना चीरा
मानव ने
अपने को ही
नियन्ता मान लिया
तो प्रकृति ने
अपना कोप
शुरू किया।
हे मानव !
अब क्यौं
घबराता है,
बचा लो प्रभू
क्यों चिल्लाता है
अब भी
समय है
प्रकति को
जान ले
नियन्ता
ही सब कुछ
है ये मान ले
इसी में तुम्हारी
और प्राणिमात्र
की..... भलाई है ।।
महेन्द्र सिंह "राज"
मैढी़ चन्दौली उ. प्र.