स्त्री

 


अमित कुमार बिजनौरी

हे नारी तेरे रूप अनेक 

तू सृष्टि में अनूप एक 

रण की फेरी हो या 

घर का आँगन 

दो कुल की बनी धुरी

विकास का तेरा पहिया ।

बहन बेटी माँ पत्नी

सुंदर है तेरे रूप 

नवरात्रों में तेरे रूप की 

होती है घर घर पूजा 

अब अबला रही ना तू सबला 

डॉक्टर इंजीनियर वकील

अंतरिक्ष तक में पहुँच गयी 

किंतु आज भी तुझको,

 अपेक्षित होना पड़ता है 

घरेलू हिंसा दहेज प्रथा 

हत्याए बलात्कार की 

जघन्य होते अपराध

और लड़ रही अधिकारों के लिए 

बनती जब काली माँ

तो थरा जाए सृष्टि

आपार है तेरी शक्ति

जो देह समझ ना पाए

मूर्ख ही कहलाए ।।


अमित कुमार बिजनौरी

स्योहारा बिजनौर

उत्तर प्रदेश

स्वरचित

मैलिक

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