कब तक बरसना है

 


अनुपम चतुर्वेदी

बता दो घटा काली कब तक ठहरना है,

ऋतु आ गई मतवाली,कब तक बरसना है।


सप्ताह भर से रिमझिम रिमझिम फुहार है,

कब होगी गागर खाली,कब तक उमड़ना है।


आम पकने पर आमादा,सब्जियां सड़ रही हैं,

कब निकेलेगी धूप ? अभी कब तक सिहरना है।


हरियाली की चादर ओढ़े धरा लगे अति प्यारी

मखमली विछौने पर,कब तक विचरना है।


पेड़ों पर कोयल कूक रही है दादुर टर-टर बोले,

खिल उठी चमेली,कहो कब तक महकना है।


अनुपम चतुर्वेदी

, सन्त कबीर नगर, उ०प्र०

रचना स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

मोबाइल नं०-9936167676

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