श्रीमती रीमा महेंद्र ठाकुर
प्रदूषण से मुक्त बनाकर, एक विधा हम लिख डाले!
पर्यावरण रख रखाव मे, एक इतिहास भी रच डाले!!
जागो उठो कलमकारो अब, तुम भी एक इतिहास रचो!
कुछ पल के ही लिए सही ही, एक वृक्ष लगा डालो, ! !
तुम शब्दो के निर्माण पथिक हो"तुम तरूवर का ध्यान धरो!
उठो धरा के कृषक बनो अब, पुनः प्रकृति के साथ चलो ! !
भूस्खलन बचाना है तो, वृक्षो को भी जीवन दो!
प्रकृति मां से दूर रहो न, न अब तिरस्कार करो! !
अभी देर हुई नही, फिर से नवनिर्मित निर्माण करो!
अलख जगाओ जन जन मे ये, प्लास्टिक का त्याग करो! !
दम घुटने के पहल सम्भलो,जन जन जीवन दान करो!!
श्रीमती रीमा महेंद्र ठाकुर
लेखिका