कमलेश मुद्ग्ल
सुबह जल्दी जाग कर गीता बाहर के रास्ते पर पानी का छी ड काव कर रही थी l अचानक भतेरी को देख वह हैरान हो गई l मुख से कुछ शब्द ही नहीं निकल पा रहे थे l भतेरी पास आकर बोली__राम राम, बहनजी, कैसी हो? घर में सब ठीक ठाक l कोरोना के समय तो यही ठीक लगता है पूछ ना l गीता के लिए तो ये न समझ आने वाली पहेली थी l वह डर के मारे जवाब नहीं दे पा रही थी l अरे? क्या हुआ? आप तो इस तरह देख रही हो-- जैसे मैं कोई भूत हूँ l अभी नींद में ही हो शायद l वह आगे बोली l मैं__मैं गीता बस देख रही थी, बोल ही नहीं पा रही थी, बता दू या नहीं, सोचने लगी वह l चाय पीकर जाऊंगी-- आज तो l लगा गीता तंद्रा से जागी और बोली___ कल शाम एक लड़का, 25 साल का होगा l सर पर, हेलमेट था l मुह पर मास्क l बेटा स्कूटर को खडा कर रहा था l उसके पास आकर बोला-- भैया आपके गली में जो सफाई करती हैं-- थोड़ी सावली, मोटी ऑन्टी--- वो परलोक चली गई l आप कुछ मदद कर देते तो--आगे वह सिर झुका कर खड़ा हो गया l बेटा-- कुछ सोचता उस से पहले बोल पड़ा--आप के घर ही ज्यादा चाय पीती थी l बेटे ने पर्स से पैसे निकाल कर दे दिये l आकर मुझे बताया तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ l पर कई दिन तक__ दी खी भी नहीं आप? गीता एक साँस में क ह गई l ये बात है_ एक ठंडी साँस लेकर बोली__ भतेरी l अब आप ही देख लो__ क्या कलयुग आ गया है__ पैसे की खातिर, जिंदा प्राणी, मृत हो गया है l पर आप यू तो सोचते एक बार माँ के जाने के बाद__ मेरा बेटा , अपने घर को छोड़कर, गली गली पैसे के लिए क्यूँ घूमता? बात में दम था, पर हम तो पैसे दे चुके थे l एक सबक भी सीख चुके थे l अब तो मैं ठीक हूँ__ भतेरी बोली__ अब चाय तो पिला दो l गीता चाय बनाने चली गई l
कमलेश मुद्ग्ल
( नई दिल्ली)