🌺१🌺
आम, नीम पीपल लगे, तुलसी हों भरपूर।
रहो प्रकृति की गोद में, मत जाना अब दूर।।
🌺२🌺
ईश्वर की यह नेमतें, रखिए आज़ सँभाल।
वर्षा जल संचित करो, जीवन हों खुशहाल।।
🌺३🌺
ताप सभी हरते सदा, हरते मनु सब रोग।
आओ रोपें वृक्ष अब, मिल-जुलकर हम लोग।।
🌺४🌺
संचय जल चहुँओर हो, धानी हो परिधान।
कंचन सी धरती दिखे, खूब बढ़े धन-धान।।
🌺५🌺
कहती सदा 'प्रबोधिनी', विनती है कर जोर।
पर्यावरण बचाइये, गूंजे जग खग शोर।।
प्रियंका दुबे 'प्रबोधिनी'
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।।