चा को गुणगान

  मालवी कविता 



      हेमलता शर्मा 'भोली बेन' 

मालवा को मनख,

सीदो ‌सट रे ।

बस ओके 'चा' नी पाव,

तो बांको हुई जाय ।।


तम उका घरे जाव, 

तो मीठो चट रे ।

बस उको 'चा' को आफर ठुकरई दो,

तो बांको हुई जाय ।।


जुंवार का रोटा ने भाजी पिरेम से खाय,

भोलो भट्ट रे ।

बस उके 'चा' को आधो भर् यो मग्गो पकड़ाव, 

तो बांको हुई जाय ।।


सगई करने जाय,

तो नरम लुच्च रे ।

पण छोरी का हाथे टिरे में 'चा' नी आय,

तो बांको हुई जाय।।


दन हो या रात ठण्ड हो या बरसात,

उको पिरोगराम बारां मैना फिटो फिट्ट रे ।

बस चा में सक्कर कम होय, 

तो बांको हुई जाय ।।


'चा' की खातर कोरा कग्गज पे अंगूठो लगई दे, 

गेल्यो गट्ट रे ।

कतरो ज खवई दो पण 'चा' नी पाव,

तो बांको हुई जाय ।।


 स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित

   सुश्री हेमलता शर्मा 'भोली बेन' 

   इंदौर, मध्यप्रदेश

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