शरद कुमार पाठक
(दोहा)
१) उमड़ते और घहरते
ये पावस के मेघ
कौंधा चमके घनप्रिया
रह रह बरसे मेघ
२)गिरति बूंद अवनी बहे
बहे धरा रेवान
होती बरषा सुखद की
मनुज हृदय अब चैन
३)छा रहें हैं सघन काले
अब मेघ वर्षा के लिए
झूमते हैं तरु विटप
मानो अगवानी के लिए
४)होति न कौंधा के बिना
अब पावस की रैन
चपला चमके कौंधा लपके
और दादुर के बैन
(शरद कुमार पाठक)
डिस्टिक------(हरदोई)
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