जितेन्द्र'कबीर'की कलम से

 


मेरा ग़म कितना कम है


अस्पतालों में जब देखता हूं मैं

अत्यंत पीड़ा में

गंभीर बीमारियों से जूझते इंसान,

तो अपनी छोटी-मोटी बीमारियों से

हट जाता है मेरा स्वत: ही ध्यान,

अपने से ज्यादा तकलीफ़ पा रहे 

इंसान से मिलकर ही अपनी तकलीफ की

लघुता महसूस करता है इंसान।


सड़कों, फुटपाथों और अस्थाई 

झोंपड़ियों में जब देखता हूं मैं

अत्यंत गरीबी में

दो जून की रोटी को तरसते इंसान,

तो अपने कम आर्थिक संसाधनों में भी

भरे हुए पेट का थोड़ा होता है गुमान,

अपने से ज्यादा गरीबी में रह रहे

इंसान से मिलकर ही अपनी गरीबी की 

लघुता महसूस करता है इंसान।


खेतों, फैक्ट्रियों एवं विभिन्न कार्यस्थलों में 

जब देखता हूं मैं

अत्यंत कठोर परिस्थितियों में

आजीविका के लिए जूझते इंसान,

तो अपने काम की छोटी-मोटी परेशानियों से

हट जाता है मेरा स्वत: ही ध्यान,

अपने से बहुत ज्यादा मेहनती

इंसान से मिलकर ही अपनी मेहनत की

लघुता महसूस करता है इंसान।


युद्धों, बीमारियों एवं दुर्घटनाओं में

जब देखता हूं मैं

अत्यंत दारुण परिस्थितियों में

जान बचाने के लिए संघर्ष करते इंसान,

तो अपने जीवन की छोटी-मोटी तकलीफों से

हट जाता है मेरा स्वत: ही ध्यान,

एक मरते हुए इंसान को देखकर ही

अपने इस जीवन के अमूल्य होने का

सबक अच्छे से सीखता है इंसान।


                     ‌         कैसे हो युवाओं का उत्थान?


मनुष्य की आयु में पंद्रह से लेकर

पच्चीस-तीस साल तक का सोपान...


जोश-ए-जवानी का होता है जब

उसमें अपने उच्चतम स्तर पर उफान,


शारीरिक ऊर्जा के मामले में जब

होता है उसमें अपरिमित परिमाण,


पत्थरों को पचाकर जिस उम्र में

अंगारों से पाट सकता है आसमान,


होता नहीं है तब उसमें थकान

नाम की चीज का कोई नामोनिशान,


बुद्धि उस समय छूती है उसकी

चंचलता के नित-नए ही आयाम,


जोखिम लेने की क्षमता करती है

उतीर्ण जिंदगी का हर इम्तिहान,


शारीरिक और मानसिक शक्ति के

इस स्तर पर अगर चाहे तो जिंदगी में

बहुत अच्छा कर सकता है इंसान,


लेकिन आजकल के ज्यादातर युवा

विभिन्न समस्याओं से हैं परेशान...


फास्ट फूड खाने के चक्कर में

छोड़ बैठे हैं स्वास्थयवर्धक खान-पान,


शरीर को मजबूत करने वाली खेलों को

छोड़ मोबाइल गेम के पीछे देते हैं प्राण,


सही जानकारी के अभाव में

यौन-संवेगों की पूर्ति के लिए अक्सर

कर बैठते हैं गलत रास्तों का एहतराम,


'कूल' दिखने के चक्कर में जाते हैं

नशे की शरण में और

गंवा बैठते हैं बहुत बार अपनी जान,


परीक्षाओं में सफलता को लेकर

माता-पिता व समाज का दवाब

अक्सर कर देता है उनके प्राण हलकान,


घर से लेकर समाज व सरकार के स्तर पर

अगर नहीं किया गया 

युवाओं की इन समस्याओं का समाधान

तो बहुत मुश्किल है 

इस देश में होना उनका किसी तरह उत्थान।

एक सीमा जरूरी है

रिश्तों में अनुचित मांग पर
एक बार जब हम झुक जाते हैं,
तो आने वाले बहुत समय के लिए
झुकने का एक सिलसिला सा
शुरू कर जाते हैं।

सामने वाला समझने लगता है
ऐसा करना जन्मसिद्ध अधिकार अपना
और हम इसे कलह टालने के लिए
एक जरूरी बलिदान समझने
लग जाते हैं।

रिश्तों में जरूरत से ज्यादा
जब हम किसी की मदद करने 
लग जाते हैं
तो जीवन की कठिनाईयों का सामना
करने में उसे 
पंगु बनाने की शुरुआत कर जाते हैं।

सामने वाला समझने लगता है
मदद पाना जन्मसिद्ध अधिकार अपना
और नहीं हो पाए मदद कभी
तो रिश्ते टूटने की कगार पर पहुंच जाते हैं।

 जितेन्द्र 'कबीर'   
गांव नगोड़ी डाक घर साच
 तहसील व जिला चम्बा
 हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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