सिम्मी

 

बलवान सिंह कुंडू'सावी'

कड़ाके की सर्दी में हमारे घर के पास एक खाली पड़े दालान में एक कुतिया ने चार-पांच पिल्लों को जन्म दिया। मेरे बेटे और उसके एक साथी ने उसके लिए घास - फूस का एक छोटा सा छप्पर डाल दिया। ज्यादा सर्दी के कारण उसके केवल दो पिल्ले ही बचे थे बाकि मर चुके थे। वह कुतिया बहुत गुस्से वाली थीऔर गली में आने -जाने वालों को काटने दौड़ती थी। एक शाम उसने वहां से जाती एक कार का पीछा किया। दुर्भाग्य से वह कार के पिछले पहिए के नीचे आ गई और तत्काल मर गई। मेरा बेटा उसके दोनो  पिल्लों को घर ले आया और एक कमरे में उनका गर्म बिस्तर लगा दिया। उनमें से एक बहुत कमजोर था और एक- दो दिन बाद मर गया। अब एक ही पिल्ला बचा था जो एक कुतिया थी। मेरा बेटा उसको दूध पिलाता रहता और सर्दी में उसकी खूब देखभाल करता। वह उसको सिम्मी कह कर बुलाता था। सिम्मी दिन- ब -दिन बड़ी होती जा रही थी। उसका नाम पुकारने पर वह फौरन दौड़ी आती। सिम्मी का स्वभाव उसकी मां से बिल्कुल विपरीत था।वह बहुत होशियार थी और उसने हमारे सगे- संबंधियों , रिश्तेदारों से जल्दी जान- पहचान कर ली। किसी भी रिश्तेदार से वह एक बार मिल लेती तो उसे नहीं भूलती थी। जब कोई रिश्तेदार काफी दिनों के बाद हमारे घर आता तो वह अपने पंजे उसकी छाती पर रख कर, कभी उसके पांव में लिपटकर उसके आगे पीछे आकर उसको उलहाना देती कि वह इतने दिनों बाद क्यों आया है। रिश्तेदार अपने नए कपड़ों की हालत देखकर उसको बड़ी मुश्किल से समझा पाता। घर का कोई भी सदस्य आए तो सिम्मी का प्रत्येक के साथ प्रेम जताने का अंदाज अलग- अलग था। हमारे गांव में बंदर बहुत थे। सिम्मी के डर से वे हमारी छत पर नहीं आते थे और कभी - कभार आ जाते तो सिम्मी उनको भगाने फौरन दौड़ पड़ती। सुबह- सुबह कुछ औरतें हमारे घर दूध लेने आती। अगर मेरी पत्नी घर नहीं होती तो सिम्मी उन्हें मेन गेट के पास रुकने का इशारा करती। गर्मियों में वह रात को कूलर के सामने आराम करतीऔर सर्दियों में मकान के आगे बने बरामदे में अपने बिस्तर में लिपट कर सोती। वह अन्य कुत्तों की तरह बेवजह नहीं भौंकती थी। जब कोई हमारे मेन गेट के पास आता तो वह तभी सचेत हो जाती थी। एक बार सर्दियों की रात मुझे गांव से बाहर जाना पड़ा। मेरी पत्नी और बेटा ऊपर के कमरे को बंद किए सोए हुए थे। हमारे पशु नीचे बरामदे में बांधे जाते थे। किसी ने रात के लगभग दो बजे चुपके से मेन गेट खोल कर सभी पशुओं की रस्सी को खोल दिया। सर्दी की ठिठुरती रात में गली में कोई भी व्यक्ति बाहर नहीं निकलता था। चोर इसी बात का फ़ायदा उठाना चाहता था। तभी सिम्मी की नींद खुल गई। वह नीचे आ कर जोर- जोर से भौंकने लगी। जिस कमरे में मेरी पत्नी और बेटा सोए हुए थे उसने अपने पंजे से उसके दरवाजे को बार- बार धक्का देकर मेरी पत्नी को जगाना चाहा। सुबह देखा तो दरवाजे पर उसके पंजों के काफी निशान पड़े थे। जब तक मेरी पत्नी जागी तब तक सिम्मी के शोर मचाने से चोर भाग चुका था। मेरी पत्नी ने नीचे आकर देखा तो सारे पशुओं की रस्सी खोली गई थी। वह डर गई और पड़ोसियों को जगा लाई। अगले दिन सुबह जल्दी ही मैं अपने घर आ गया। जैसे ही मैंने मेन गेट पार किया तो सिम्मी ने अपने पंजे मेरी छाती पर रख दिए। वह मुझे पशुओं के बरामदे की ओर जाने का इशारा कर रही थी। वह एक- एक पशु के पास ऐसे जा रही थी मानो वह मुझको उनकी गिनती करवा रही हो। उस दिन के बाद सिम्मी ऊपर के बरामदे में बैठी गली में आने -जाने

वाले किसी लंबी दाढ़ी वाले को देखकर तुरंत मेन गेट पर आ जाती और उस पर जोर -जोर से

भौंकने लग जाती। वह पहले ऐसा कभी नहीं करती थी और शांत ही रहती थी। हमारे घर से कुछ दूर एक बाड़े में कई साल से कुछ लंबी दाढ़ी वाले पशुओं के व्यापारी डेरा जमाए थे। जिस रात हमारे पशुओं की रस्सी खोली गई थी उसी रात उन्होंने काफी पशुओं को ट्रक में भरकर भेजा था। गांव में चोर के बारे कई प्रकार की अफवाह फैली हुई थी। दो -चार दिन के बाद वो व्यापारी उस बाड़े को छोड़ चले गए थे। धीरे -धीरे सिम्मी ने भी किसी लंबी दाढ़ी वाले को देखकर भौंकना बंद कर दिया था। कुछ महीनों के बाद सिम्मी ने पांच  पिल्लों को जन्म दिया और उनके जन्म के तीन -चार बाद ही मुहल्ले के लोग पिल्लों को मांगने हर रोज हमारे घर आने लगे।

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