रेखा रानी
रिश्तों के बाज़ार में,
स्वार्थ के व्यापार में,
अक्सर सिसकते देखा है,
भावों को मरते देखा है।
मैंने पल -पल
दम घुट घुट कर,
झूठ के आगे
सत्य को झुकते देखा है।
कई बार लुढ़कते देखा है।
शीशे के महलों से टकराकर,
अट्टहास फरेबी ,मक्कारी,
निश दिन करती प्रहार यहां,
एहसास ,प्यार अंतर्मन में,
बस दम तोड़ते देखा है।
रंग -मंच बनी इस दुनिया में,
आ जाए कब, कौन मुखौटे में।
दानवता कब हावी होकर,
मानवता का उपहास करे।
रेखा खुशबू से भरे हुए फूलों को
बस खार से घायल देखा है।
रेखा रानी
विजय नगर
गजरौला
जनपद अमरोहा
उत्तर प्रदेश।