महेन्द्र सिंह "राज"की कलम से

 


विद्यार्थी जीवन 

विद्यार्थी   जीवन  तपसी  सा

तपना  पड़ता   है  दिन  रात। 

बिनातपे कोई सफल न होता

पक्की  है  मानो   यह   बात।। 


काग सदृश चेष्टा हो जिसकी,

 बगुले  सम  नित  ध्यान रहे।

मात पिता गुरु चरणों में नित, 

सादर  नम जिसका बान रहे। 


जिसकी निद्रा श्वान समान हो,

लेता  हो   बस  अल्प अहार।

सदन त्याग जो  बाहर  रहता,

पाता विद्याका असीमउपहार। 


विद्यार्थी  का   मतलब  होता, 

जो  विद्या  का  सम्मान  करे।

मानवीय मूल्यों  को अपनावै

अपनी संस्कृति का मान करे।

 

साक्षरता अरु शिक्षा का जो, 

अन्तर   ठीक   समझता  है।

सही मायने  में वही विद्यार्थी

सद्गुण का साधक  बनता है।


जो विद्यार्थी पढ़ लिखकर भी,

सदाचार   वाहक  ना  होता। 

उसकी  विद्या  व्यर्थ है  मानो,

व्यर्थ समय वह अपना खोता।।


बान= वाणी, बानी

 

प्रेम की मशाल

*************


प्रणय निवेदन करते करते, 

          परिणय तक ले आया तुमको। 

पर  परिणय के पहले मैंने, 

          कभी न हाथ लगाया  तुमको।।

 

यही  हमारी  संस्कृति  प्यारी, 

               यही  हमारी  पुरा सभ्यता।   

वचन दियातो उसे निभाया,

           परिणयकर अपनाया तुमको।।


पास भी आया  बातें भी  की, 

                 हाल  चाल भी पूछा तेरा।

पर संयम खुद पर रक्खा,

         कभी न चोट पहुँचाया तुमको।।


दुनियाँ  कहती  है  कहने दे , 

              सच्चा  था  तेरा  मेरा  मन।

तूने जिद ना किया कभी,

        ना गममें कभी डुबाया मुझको।।


शैशव काल से युवा होने तक,

              एक दूजे को दिल से चाहे।

 पर हमने कभी जिद ना की,

             ना ही कभी सताया तुमको।।


दोनों कुल  की मर्यादा का नित, 

                 हम  दोनों ने ध्यान रखा।    

ना तूने कभी भुलाया मुझको,

          ना मैंने कभी भुलाया तुमको।।


वही  प्रेम, प्रेम  सच्चा है, 

       जिसमें वासना की दुर्गन्ध न हो।

प्रेम में मेरे कपट न था,

   ना जिद कर कभी रुलाया तुमको।।


सुनों ध्यान  धर  मेरी  बातें, 

           दुनियाँ  के  सब  प्रेम पथिक।

मेरा प्रेम निर्मल पवित्र था, 

         कभी नहीं  भटकाया  उनको।।


प्रेम कंचन है काँच नहीं, 

       जो तपकर होता है स्वर्ण भस्म। 

तुमभी शुचि हृदय पवित्रा थी,

           कभीनहीं बहकाया मुझको।।


हम मिशाल बने जग में,

      हो परिणय जीवन सुखी हमारा।

ना तूने कभी गिराया मुझको,

           नामैंने कभी गिराया तुमको।।


महेन्द्र सिंह "राज"

मैढी़ चन्दौली उ. प्र. 

9986058503

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