डिजिटल दुनिया का मारक अस्त्र

 राकेश चंद्रा 

उल्लेखनीय है कि पश्चिमी जगत में होने वाला सारा कार्य- व्यापार इन्टरनेट के माध्यम से कम्प्यूटर या लैपटाप पर सिमट कर रह गया है। अब कागज-कलम पुराने जमाने की बातें रह गई हैं। मनुष्य के द्वारा किया जाने वाला सारा ‘मैनुअल’ कार्य कब कम्प्यूटर पर  ‘क्लिक’ के द्वारा सम्पन्न होने लगा है। विगत कुछ वर्षों में अपने देश में भी इस डिजिटल संस्कृति ने अपने पैर पसारने प्रारम्भ प्रारम्भ कर दिये हैं। अनेकानेक सरकारी कार्य कब आनलाइन होने लगे हैं। अर्थात् जब घर बैठे ही कम्प्यूटर के माध्यम से आप शासकीय देयों यथा बिजली का बिल, गृहकर, बीमा पालिसियाँ आदि, का भुगतान कर सकते हैं। निजी व्यापारिक एवं वाणिज्यिक क्षेत्र ने भी इस दिशा में तीव्र गति से कदम बढ़ाये हैं। उदाहरणार्थ, अब सुई से लेकर हवाईजहाज तक किसी भी गृहोपयोगी अथवा अन्य प्रयोजनार्थ वस्तुओं को आनलाइन खरीद के जरिये घर बैठे प्राप्त किया जा सकता है। बैंक में अपने खाते से सम्बन्धित व्यक्ति को या दुकानदार/व्यापारी को भी आनलाइन भुगतान किया जा सकता है।

वर्तमान समय में लोगों की आस्था बैंकिग प्रणाली में बढ़ी है। अब अत्यन्त अल्प आय वर्ग के लोगों के भी बैंक खाते, मुद्रा योजना के तहत खुल गये हैं। आनलाइन सुविधा के दृष्टिगत अब लोगों को बैंकों में लम्बी लाइन भी नहीं लगानी पड़ती है। इसी प्रकार स्थान-स्थान पर ए.टी.एम. की स्थापना हो जाने के फलस्वरूप दिन-रात कभी भी एक निर्धारित सीमा के अन्दर नकद भुगतान ए.टी.एम के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार बैंकों द्वारा निर्गत क्रेडिट एवं डेबिट कार्डों के माध्यम से दुकानों, पेट्रोल पम्पों आदि में वांछित धनराशि का भुगतान किया जा सकता है।

बैंकिग व्यवस्था में किये गये प्रयोगों एवं प्रदत्त सुविधा से आये दिन होने वाली परेशानियों से लोगों को निजात मिली हैं। पर विगत वर्षों में इनको लेकर एक नये अपराध का भी जन्म हुआ है जिसे साइबर अपराध की श्रेणी में एक जा सकता है। सामान्य बोलबाल में इसे ‘हैकिंग’ कहा जाता है। इस कला में पारंगत अपराधी व्यक्तियों के बैंक खाते पर नजर रखते हैं या फिर अनुमान के आधार पर किसी खाताधारक के बैंक पासवर्ड को हैक करके उसके खाते में जमा धनराशि आनलाइन प्रक्रिया के अन्तर्गत निकाल लेते हैं। कभी-कभी एक ही प्रयास में अन्यथा बार-बार प्रयास करके उचित पासवर्ड खोज लेना ही उनकी सफलता का द्योतक है। एस्सोचैम-प्राइसवाटर कूपर संस्था की कुछ समय पूर्व निर्गत एक रिपोर्ट के अनुसार अपने देश में वर्ष 2011 एवं 2014 के बीच इन्फारमेशन टेक्नालाजी एक्ट, 2000 के अन्तर्गत साइबर अपराधों में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। हैकिंग का शिकार केवल भारत ही नहीं, अपितु सारा विश्व है। मई, जून एवं अगस्त 2016 में ‘वान्नाक्राई’ एवं ‘रैन्समवेयर’ नामक साइबर अटैक की चपेट में विश्व के 150 से भी अधिक देश आये थे। साइबर अपराधियों द्वारा सम्बन्धित बैंकों एवं संस्थाओं के खातों को ‘सीज’ कर दिया गया जिन्हें अवैध रूप से क्रिप्टो करेंसी प्राप्त करने के उपरान्त खोला गया।

उपरोक्त क्रम में एटीएम कार्ड, डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड आदि की ‘क्लोनिंग’ करके सम्बन्धित व्यक्ति के खातों से पैसा निकालने के प्रकरण आये दिन प्रकाश में आते रहते हैं। इस समस्या से निपटने के लिये जहाँ प्रथम आवश्यकता ‘सावधानी’ है, वहीं दूसरी ओर कुछ अन्य बातों की ओर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। अक्सर मोबाइल फोन पर लोग किसी होने वाले लाभ का हवाला देकर पासवर्ड या पिन नम्बर आदि मांगते हैं। ऐसे लोगों से बचने की आवश्यकता है। अधिकारिक सूचना केवल सम्बन्धित बैंक या वित्तीय संस्था की अधिकृत वेबसाइट पर ही देखी जा सकती है। इसी प्रकार किसी अनजानी ई-मेल और उससे संलग्न किसी संलग्नक (अटैचमेंट) को खोलना भी हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अपना पासवर्ड भी कुछ समय के अन्तराल पर बदलना आपको सुरक्षित कर सकता है। पासवर्ड में केवल शब्दों का प्रयोग न करके यथासंभव अंकों एवं अन्य चिन्हों का भी प्रयोग करने से उसे क्रैक करना आसान नहीं होता है। बैंकों से सम्बन्धित एटीएम एवं क्रेडिटकार्डों के खो जाने अथवा दुरूपयोग किये जाने पर तत्काल बैंक को सूचित किया जाना चाहिये तथा पुलिस में भी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराया जाना चाहिये। हैकिंग की समस्या नई एवं  विशिष्ट प्रकृति की है जिसके लिये उचित स्तर के समाधान खोजना भी आवश्यक है, पर ससमय सावधानी सबसे बड़ी ढाल है।

राकेश चंद्रा 

लखनऊ

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