डाःमलय तिवारी बदलापुर
करके सिंगार फिर मेरा दामन सजा दो।
धरा कह रही मुझको दुलहन बना दो।।
लगा कर हरे पेड़ पौधों की डलियाँ ,
गूँथ कर हरी चूनर में बागों कलियाँ,
हर परिन्दों के गीतों को, झरनो की धुन पर,
मेरे घर आँगन की, महफिल सजा दो।। धरा कह रही है =====
निकल ऊँचे पर्वत से, बल खाती नदियाँ,
पीठ पर हर पठारों के इठलाती बगियाँ,
चूम कर सागरों के अधर, उड़ते बादल,
झम झमाझम बरस मेरा तन मन डुबा दो।
धरा कह रही है ========!
खिल खिला कर कमलिनी, सरोवर में महके,
लेके मकरन्द अरिदल बहारों में चहके,
लक्ष्मी होके मैं सबका आँचल भरूँगी,
पुरवा के मीठे झोंके "मलय"बनके तुम,
चाँद तारों से फिर माँग मेरी सजा दो।
धरा कह रही है ========!
डाःमलय तिवारी बदलापुर
स्वच्छ पर्यावरण, स्वस्थ जीवन का आधार।। मलय।।