ग़ज़ल

   


डॉ शाहिदा

ये पंक्षी की उड़ान है, इसे लफ़ज़ों में न‌ क़ैद कर

ये प्यार की ज़ुबान है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर,


किसी की सोच पर भला, कोई इख़तियार क्यूँ ,

ये अलग ख़याल है , इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।


ख़ुश्बू हवाओं संग चली कोई कब देख है पाया 

ये हवा आज़ाद है , इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।


रेत पर लिखी इबारत कब मिल गयी ख़ाक में

ये अलग जज़बात है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर।


दिल का दर्द दिल में रहें होठों पर हों मुस्कुराहटें,

ये राज़ की बात है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर।


दरिया की लहरों पे लिखा ख़त पहुंच गया उस तक

ये प्यार का पैग़ाम है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।

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