डॉ शाहिदा
ये पंक्षी की उड़ान है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर
ये प्यार की ज़ुबान है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर,
किसी की सोच पर भला, कोई इख़तियार क्यूँ ,
ये अलग ख़याल है , इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।
ख़ुश्बू हवाओं संग चली कोई कब देख है पाया
ये हवा आज़ाद है , इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।
रेत पर लिखी इबारत कब मिल गयी ख़ाक में
ये अलग जज़बात है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर।
दिल का दर्द दिल में रहें होठों पर हों मुस्कुराहटें,
ये राज़ की बात है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर।
दरिया की लहरों पे लिखा ख़त पहुंच गया उस तक
ये प्यार का पैग़ाम है, इसे लफ़ज़ों में न क़ैद कर ।