गज़ल



स्मिता पांडेय

बीच सफर से मुझे वापस मुड़ना पड़ा,

चुनौतियां सामने थी, मुझे लड़ना पड़ा ।


बिखर ही जाती तेरे जाने के बाद मैं,

जिम्मेदारियां सामने थी, संभलना पड़ा ।


आंधी ने बुझाने की करीं लाख कोशिशें,

दीया विश्वास का था तो जलना पड़ा ।


कुम्हार के चाक पर चढ़ने के बाद,

मुझे कितने ही रूपों में ढलना पड़ा ।


सच की पहचान को बचाने के लिए,

झूठ को फिर बेनकाब करना पड़ा ।


रहेंगी बहारें न सदा इस जीवन में,

फूल को भी शाख से झड़ना पड़ा ।


स्वरचित 

स्मिता पांडेय लखनऊ

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