नशा आदमी की बुद्धि हर लेता है

 


रवींद्र कुमार शर्मा

कालेज में पढ़ते थे जब

दोस्त मुफ्त में सिग्रेट पिलाने लगे

हम भी दोस्तों की देखा देखी

धुएं के छल्ले उड़ाने लगे


दोस्तों की जमती हर रोज़ महफ़िल

हम भी महफ़िल में अब जाने लगे

सिगरेट शराब तो पहले से पीते थे

चरस अफीम गांजा चिट्टा भी आजमाने लगे


घर से पैसे मंगवाते खर्चे के नाम पर

नशे पर उसको उड़ाने लगे

दावतें होती रोज़ छुप छुप कर

नशा हो गया हावी नशेड़ी कहलाने लगे


नशे की दलदल में जो पांव पड़ गया

बाहर निकलने के लिए छटपटाने लगे

दलदल से बाहर नहीं आ सके

जितना छटपटाये उतना ही अंदर जाने लगे


छूट गई पढ़ाई कालेज में भी हो गए फेल

चिट्टे के केस में पकड़े गए हो गई जेल

माँ बाप का नाम भी हो गया बदनाम

ज़मीन भी बिक गई न नमक बचा न तेल


नशा दीमक की तरह सब बर्बाद कर देता है

नशा आदमी की बुद्धि हर लेता है

ज़िन्दगी हो जाती है तबाह

नशेड़ियों से अपना भी आंख फेर लेता है


नशा कभी मत करो सुन लो मेरी बात

देखता नहीं धर्म मज़हब और जात पात

बर्बाद हो जाता है पूरा परिवार

इज़्ज़त शौहरत सब हो जाती तार तार


रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं

जिला बिलासपुर हि प्र

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