अपने आलीशान बंगले के एयरकंडीशन कमरे के कीमती पलंग पर औंधे मुंह पड़ी वह] रो-रो कर निढाल हो चुकी थी । समझ नहीं पा रही थी कि ऐसी क्या कमी हो गई कि हर सुख सुविधा से भरे इस घर का सबसे छोटा बेटा मारूती कार चुराने लगा । उनका लाडला जेल की सीकचों के पीछे बन्द है यह ख्याल ही उन्हें बेचैन किये हुये था ।
आराम कुर्सी पर निढाल पड़े पति की ठंडी सांस ने उनका ध्यान आकर्षित किया ।
‘‘‘‘विपिन के इस पतन के लिये हम जिम्मेदार हैं रूपा ।’’
‘‘‘‘हम ?..................... अरे क्या कह रहे हो तुम \ उठ कर पलंग पर बैठ गयी वह ।
‘‘‘‘याद है विपिन छोटा था जब उसकी टीचर ने हमें बुलाकर बताया था कि विपिन दूसरे बच्चों की कलम] रबर आदि चीजें चुरा लेता है । कभी-कभी मार-पीट कर छीन भी लेता है । और हम दोनों कितनी बुरी तरह उस टीचर पर ही बिगड़ गये थे । यहां तक कि उसकी शिकायत प्रिंसीपल से भी कर दी थी।’’ अतीत को खुली आंॅखों से देखते हुये विपिन के पिता बोल रहे थे ।
‘‘‘‘हां] याद है । लेकिन तब विपिन बहुत छोटा बच्चा था । चोरी-चकारी का अर्थ जानता भी नहीं था । उस उम्र में बच्चे ऐसी हरकतें करते ही हैं ।’’ रूपा ने बेटे का पक्ष लिया ।
‘‘‘‘हां] करते हैं लेकिन बड़े उन्हें सही रास्ता दिखाते हैं ।...............जो तुम आज कर रही हो वही गलती हमने उस समय भी की थी । काश । हमने टीचर की बात पर ध्यान दिया होता] तो आज हम इस दुख का सामना नहीं कर रहे होते ।’’
फटी-फटी आंखों से रूपा पति को देखती रह गई सच का सामना करने की हिम्मत उसमें नहीं थी ।
नीलम राकेश
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