श्रीकांत यादव
कौन कहता है भाई,
कुछ हालत संभली है!
तस्वीरें थी स्याह सफेद
अब तो बहुत गंदली हैं!
हां हल्कू की हालत,
बस इतनी बदली है!
नील गायों की जगह,
अब सांडों ने ले ली है!
सहना शहर चला गया,
अब बैंक वहीं चलाता है!
किसानों की शक्ल देख,
उसका जी मिचलाता है!
जबरा हल्कू का चला गया,
कोठी में दूध मलाई खाता है!
हल्कू जैसा चेहरा देख,
सोफे पर चढ़ गुर्राता है!
हल्कू भी खेती छोड़,
मनरेगा में जा कमाएगा,
खेती का तो झंझट छूटे,
मजदूर भले कहलाएगा!
उसकी बीवी नहीं मानती ,
कहती खेती में शान है!
हल्कू कानूनी चकल्लस से,
लगता बहुत परेशान है!
हल्कू की बीबी सहमी रहती,
कम नाता है खेतों से!
सोहदों का नहीं भरोसा,
जो तेल निकालते रेतों से!
श्रीकांत यादव
(प्रवक्ता हिंदी)
आर सी 326, दीपक विहार
खोड़ा, गाजियाबाद
उ०प्र०!