हे तरुवर कितना है
तुम्हारा ह्रदय विशाल
तरु तल बैठे मन सोचे
सबको आश्रय देता पर
खुद कहा यह आश्रय खोजें
आंधी धूप सर्दी
कितना कुछ सह जाता
पर वह अपनी पीड़ाए
कहो किससे बतलाता
हर कोई आता है उस तक
कुछ ना कुछ अपेक्षा लिए
निर्विकार खड़ा रहता है
अपनी ही प्रतीक्षा लिए
रूप गंध फूलों के
हर कोई रखवाले
पर उसकी व्यथाओं को
कहां कोई संभाले
उसने हमें जीवन दिया
जीवन उस पर उधार है
पर हम समझदारो को
समझाना बेकार है
वृक्ष भी पुत्र समान
है अनमोल थाती
खुद विष पी करके
जीवन रस पिलाती
क्या क्या नहीं पाए
हमने उपहारों में
पर अपनी कपटता
दिखाते रहे व्यवहारो मे
अब समय आ गया है
हम उन्हें सम्मान दे
ताकि जीवन जीने का
वह हमें वरदान दें
रेखा शाह आरबी
जिला बलिया उत्तर प्रदेश