उदय किशोर साह
ये कैसा सावन आया है
नफरत की हो रही है बरसात
धरती हो गई पानी पानी
मानवता हो रही है शर्मसार
ये कैसा सावन आया है
बारूद की ढ़ेर पर खड़ा है संसार
मार काट की होड़ मची है
इन्सानियत की लुट गई है बाजार
ये कैसा सावन आया है
भाई भाई में ठन ग्ई है दीवार
धन दौलत की चाहत में
रिश्ते की मर्यादा हुई तार तार
ये कैसा सावन आया है
बेटियों संग हो रही है अपराध
हर नुक्कड़ पे खड़ा है वहशी
चुप क्यूं देख रही है सरकार
ये कैसा सावन आया है
वोट के लिये प्यासी है तलवार
त्राहि त्राहि मची हुई है
कहाँ छुप गये हो अय पालनहार
ये कैसा सावन आया है
धर्म को बना लिया व्यापार
अपने अपने धर्म की झंडा ले
निकल पड़े हैं धर्म के कर्णधार
ये कैसा सावन आया है
भ्रष्ट्राचारियों की लगी है लंबी कतार
आम जन शोषित हो रोते
कौन करेगा इसकी उपचार
ये कैसा सावन आया है
राजनेता बना कुर्सी का यार
जनता की दर्द कोई नहीं सुनता
लानत है ऐसी सहचार
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088