नीति के दोहे....
तू ही मीरा राधिका, तू ही है घनश्याम..।।
डूबा हूँ मैं सोंच मे,क्या दूँ तुझको नाम..।।
रोज नई बातें करो,सोंचो नए विचार..।।
किसी पुरानी राह पर,कब तक चलोगे यार..।।
अकड़ो मत वट बृक्ष सम,करो न अति विश्वास..।।
तेज हवाएं जब चलें, बन जाओ तुम घास..।।
जीवन में मत मानिए, कभी स्वयम् से हार..।।
खुद से हारे व्यक्ति का, जीवन है बेकार..।।
इस जीवन में आप ने, वोया है जो आज..।।
वही काटना पडेगा, श्रीमन कल मय ब्याज..।।
ग़ज़ल
मेरी मौजूदगी जहाँ होगी..।।
आप की बात भी वहाँ होगी..।।
आइना तोड़ने से क्या हासिल..
जो हकीकत है वो अयाँ होगी..।।
मेरा विश्वास मुझसे कहता है..
मेरे हाथों में कहकशाँ होगी..।।
जब लिखी जाएगी किताबे वफा..
उसमे अपनी भी दास्ताँ होगी..।।
वज्मे नादान मे नितान्त सुनो..
इल्म की बात राइगाँ होगी..।।
समीर द्विवेदी नितान्त
कन्नौज.. उत्तर प्रदेश