रात होने से पहले हीं ,
एक तुम ,
ज्योति आशा की,
अब तुम जला लो ।
जाने कब हो,
धरा पर अंधेरा,
उससे पहले,
सवेरा बना दो ।।
देखना है दशा,
उस तूफां की,
जो उजाड़ा है,
घर दोस्ती का ।
लेके विस्वास में,
सबको अपने,
पथ दिखाया,
हमें दुश्मनी का ।।
वो जमाना क्या,
फिर न दिखेगा,
जिसमें दिखती थी,
अपनों की खुशियां ।
वो समय क्या,
मिलेगा दुबारा ,
अपनी लगती थी,
ये सारी दुनियां ।।
खोज हमने,
किए हैं हजारों,
इस धरातल को,
छिन्न भिन्न कर के ।
चैन से जिंदगी,
चल सके वो ,
एक ऐसा भी,
हम खोज करते ।।
एक नजर में,
सब तुम समझ लो,
कुछ अच्छाई न,
कोई किया है ।
भाई कहने से,
भाई ना होता ,
राम भाई को,
जैसे किया है ।।
है धरातल पर,
अब भी अंधेरा,
मिट सके ना जो,
कुछ जूगनूंओं से ।
एक ज्योति हीं,
काफी यहां पर ,
प्रज्वलित हो जो,
हर एक गुणों से ।।
✍️ ऋषि तिवारी "ज्योति"
चकरी, दरौली, सिवान (बिहार)