डॕा शाहिदा
फिर नयी दुनिया बसाएंगे हम तुम,
फिर नयी महफ़िल सजाएंगे हम तुम |
ग़ौर से तुम देख लो दरो दीवारको,
फिर नयी बस्ती बसाएंगे हम तुम |
आँखें हैं नम, सबके होठों पे सिसकियाँ,
फिर नयी मुस्कुराहटें सजाएंगे हम तुम |
इतने पेड़ों को काट दिया किसने,
फिर नीम पीपल लगाएंगे हम तुम |
भाई भाई से अलग हो गया जो,
फिर प्रेम की अलख जगाएंगे हम तुम |
नफ़रतों को जड़ से उखाड़ देंगे,
फिर प्यार वाला बीज जमाएंगे हम तुम |
अनेकता में एकता को जोड़कर,
फिर देश को मज़बूत बनाएंगे हम तुम |