नीलम राकेश
घंटी बजी तो मैं चौक उठी। आजकल करोना काल में घंटी जरा कम ही बजती है। दरवाजे पर मेरी कामवाली की 12 वर्षीय बेटी खड़ी थी।
"आंटी हम चंदा लेने आए हैं।"
"चंदा? किस बात का चंदा ले रहे हो तुम लोग ?" उसके साथ खड़े नन्हे बच्चों पर नजर डालते हुए मैंने पूछा।
"वह जो दादी अम्मा सड़क पर झाड़ू लगाती है ना, उनके घर पर खाने को कुछ नहीं है। काम पर नहीं जा पा रही है ना। इसीलिए हम लोग चंदा करके उनके लिए राशन लाएंगे।"
"देती हूँ बेटा। नेक काम कर रहे हो। आगे भी ऐसे नेक काम करो, तो मेरे पास जरूर आना।" पैसा देकर उन्हें देर तक जाता हुआ देखती रही। एक आशा जगी थी। कोरोना से उत्पन्न ये स्नेह का अंकुर एक दिन जरूर वृक्ष बनेगा।
नीलम राकेश
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