'ऐनुल' बरौलवी
हमें यूँ भुलाकर कहाँ जाइयेगा
ये नज़रें चुराकर कहाँ जाइयेगा
नहीं कीजिये बेवफ़ाई कभी ये
हमें फिर सताकर कहाँ जाइयेगा
अँधेरे को भर ज़िन्दग़ी में हमारी
उजाले उठाकर कहाँ जाइयेगा
हमें चाँद - तारे , हसीं सब नज़ारे
ये सपने दिखाकर कहाँ जाइयेगा
ज़माने में रुस्वा नहीं कीजिये अब
हमें यूँ रुलाकर कहाँ जाइयेगा
न मझधार में यूँ हमें छोड़िये अब
ग़मे - दिल बढ़ाकर कहाँ जाइयेगा
खुशी ज़िन्दग़ी की नहीं छीनिये ये
मेरा दिल जलाकर कहाँ जाइयेगा
बहुत ख़ार अबतक चुभाये हैं 'ऐनुल'
अभी मुँह छुपाकर कहाँ जाइयेगा
'ऐनुल' बरौलवी
गोपालगंज (बिहार)