गीत लिख जाऊंगी मैं अमिट प्रेम के,
बस ख़ुश रहने की अदा सीख लूं।
मान-सम्मान से जिन्दगी जो कटे,
अपनेपन की थोड़ी हया सीख लूं।
भर दूं खुशियों से आंगन सजन,
माफ़ करने की सुन्दर विधा सीख लूं।
कभी भीगे न अश्कों से ये नयन,
अश्रु धारा पोंछने की कला सीख लूं।
रूठकर जाने न दूंगी अपनों को,
क्षमा मांगने की वज़ह ढूंढ लूं ।
अनुपम चतुर्वेदी
सन्त कबीर नगर, उ०प्र०
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