क्या किसान परीक्षा नहीं देते

 

श्रीकांत यादव 

कौन कहता है कि किसान,

कोई परीक्षा नहीं देते हैं? 

ये बादल ये मौसम ये साहुकार ,

इनकी जमकर परीक्षा लेते हैं ||


ये भी परीक्षा की तैयारियों में ,

रात दिन बेहद पसीना बहाते हैं |

सादे कागज जैसे खेत इनके, 

हल की लेखनी से लिखे जाते हैं ||


स्याही से लिखे कागजों के अक्षर, 

तो बीजों के अंकुर खेतों के अक्षर हैं |

उगते बढते पौधे इनकी मात्राएं हैं, 

सजीव अक्षरों के स्वामी निरक्षर हैं?


वर्ष में कई परीक्षा देने वाले, 

परीक्षार्थी जैसे किसान भी हैं |

पूरक परीक्षार्थी भी हैं ये, 

व्यर्थ जाते श्रम से परेशान हैं ||


सूखा अकाल बाजार भाव, 

अनुत्तीर्ण होनें के कारण हैं।

खाद बीज मंहगाई से लडते, 

क्या परीक्षार्थी ये साधारण हैं?


इनकी लागत ही इनके प्रश्न हैं, 

असंभाव्य उपज इनके उत्तर।

परीक्षाफल पर कुंडली मारे और, 

बेमौत मरने वाले यही बदतर।।


कुछ भोले भालों में गिनती,

इनकी करना ही बेवक्ती है।

यदुवंशी इनकी रग रग में तो,

सदा रहती देश की भक्ति है।।


कोमल हृदय परीक्षार्थी से ये, 

सदा कर्ज के सदमें में जीते हैं |

निराशा खुद एक बडी परीक्षा है |

अत:आत्महत्या कर भी मरते हैं ||


श्रीकांत यादव 

(प्रवक्ता हिंदी)

आर सी-326, दीपक विहार

खोड़ा, गाजियाबाद

उ०प्र०!

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