मेरे प्रिय अध्यापक

 

श्वेता शर्मा

अतीत के झरोखे से

जब जब मैने देखा है

मेरे गुरु आपको हर बार

बहुत करीब देखा है


आप ने ही नींव डाला

टेढ़े मेढे पत्थर को संवारा

ईटों को भी 

साथ साथ जमाया

एक नई इमारत बनाया

आज इमारत झूम रही है

गगन को देखो चुम रही है


ये आपके ही परिश्रम का फल है

मेरा भविष्य आज उज्ज्वल है

मेरा हृदय आपका कृतज्ञ है

आपने हमारा भविष्य संवारा

उचित ज्ञान हममें डाला

उचित ज्ञान हममें डाला ।।

श्वेता शर्मा

रायपुर

छत्तीसगढ़

स्वरचित

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