हाइकु



नीरज कुमार सिंह

तबाही छाई

वायरस रूप में

आफत आई।


दुबको सभी

संकट टल जाए

कभी न कभी।


रो रही धरा

मानव किए पाप

घड़ा है भरा।


प्रकृति नाश

संकट का दावत

होता विनाश ।



होती सहाई

  अन्न पानी देकर 

धरती माई।



प्रकृति बचा

कर सदा तू सेवा

मिलेगा मेवा।


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