ममता का जादू
मेरा बचपन इक जादू था
जादूगरनी मेरी माँ थी
हर बार दुआ ही निकलती थी
जब -जब वो पलक को झपकती थी।
जब चोट जोर से लगती थी
माँ फूँक मार कर कहती थी
लो ठीक हो गया जल्दी से
फिर झाड़ फूंँक पर आंँचल से
गोदी में लेकर टहलती थी।
नदिया के किनारे चंदा को
आरे-पारे कह बुलाती थी
सोने का कटोरा मंँगाती थी
फिर दूध -भात को चुपके से
मुंँह में घुटक से खिलाती थी।
सुंदर सुंदर कपड़े लाकर
नहला -धुला कर पहनाती थी
नजरें भर कर न अघाती थी
ना नजर किसी की लग जाए
काला टीका भी लगाती थी।
वह आसमान की सैर मुझे
पुलु लुलू कहकर कराती थी
काचर -कूचर कह कर ही वह
दुख रोग सभी को भगाती थी।
हर चीज समय पर हाजिर कर
हैरत में डाल मुझे देती
जादू की नगरी से लाकर
खुशियों का पिटारा भर देती।
मांँ मैं भी जादू सीखूंगी
तेरी ममता की छांँव में
जीवन का हर पल जी लूंँगी
इस जादुई दुनिया को मैं
जन्नत से ऊपर जगह दूंँगी।
आत्ममंथन
बहुत शांत है गलियांँ मेरे शहर की
लगता है, सन्नाटों का कहर है।
कभी हंँसती खिलखिलाती जिंदगी थी,
आज खौफ के साथ हवा में भी जहर है।
हर तरफ दर्द का दरिया है.....
एहसास बिखरते जाते हैं,
गले लगाना तो दूर.......
अपने, अपनों से हाथ भी ना मिलाते हैं।
"जिंदगी एक नेमत है"हमेशा सुनते आए हैं,
पर क्या पता था........
श्मशान में भी लाइन लगाए जाते हैं।
सुना है आबोहवा बदल गई इस दुनिया की,
पर ये न जाना था कि.......
हवा बेचकर भी पैसे कमाए जाते हैं।
बहुत हो चुका डर के साए में जीना अब,
चलो, खौफ के मंजर को फिर खुशनुमा बनाते हैं।
मानवता के आंँगन से.......
जी भर के खिलखिलाने की वजह ढूंँढ कर लाते हैं।
चलो, खुशियों के बंद दरवाजे पर दस्तक देते हैं,
इसी आशा, विश्वास से नई चेतना जगाते हैं कि.....
नई उम्मीदों के द्वार खुल जाएँ,
जीवन की बिखरी खुशियांँ
फिर वापस लौट के घर आएंँ
मेरे शब्द मेरी कलम से
मीनू "सुधा