साधना कृष्ण
ए भारत की रमणी,कहाँ किसी से हारी है।
आफत संकट में भी ,खुद को वो संवारी है।।
जन्म से मरण तक, केवल सुख बाँटती।
अंत समय आया तो,लगे अपनों को भारी है।।
कंकर पत्थर के मकां , वही बनाती है घर।
साफ -सफाई में मानो ,सुख चैन भी वारी है।।
होती जरा भावुक वो ,माफी जल्दी दे देती है।
मांग रही है सम्मान , अभी लड़ाई जारी है।।
मत भूलो कि वो माँ है ,पालक भी वो बनती।
समझ नहीं आता कि , क्यों जीवन दोधारी है।।